यह तुम थी
(ये कहानी नहीं मेरे आस-पास के मेरे अपने है)
1- हॉस्पिटल के ICU में लाइफ सपोर्ट सिस्टम पर पिछल े 7 दिनों से पड़ी राजकुमारी की जान कहाँ अटकी थी ये डॉक्टरों को भी पता नहीं था ...लम्बी बीमारी के बाद जब ज्यादातर रक्त नलिकाए सुख गई थी इस लिए डॉक्टरों ने कंधे और छाती के बीच चिर लगाकर वहाँ से दवाईयाँ दे रहे थे... सतावे दिन भाई साहब आये और बेड के करीब जाकर धीरे से राजकुमारी के कानों में कहा ''अब जाओ .... तुम्हारी ये हालत मुझसे देखी नहीं जाती.... संघ पहले छोड़ने के लिए मैंने तुम्हे अब माफ़ किया .... जल्द ही मिलूँगा.'' सात दिन पहले ब्रेन हैमरेज के बाद कोमा में गई राजकुमारी इसके बाद दो घंटे में ही चल बसी... भैया कभी हारे नहीं थे, दो जवान बेटों की दुर्घटना में मौत के बाद भी उनके चेहरे पर हताशा नहीं थी ...लेकिन आज बूढ़े, थके हुए और हताश दिख रहे थे .... उन्हें रोना आता नहीं .... लेकिन छः महीने में एक दिन अचानक बीमार पड़े जब तक डाक्टर कुछ समझा पाते बुखार दिमाग पर चढ़ा.... खुद राजकुमारी से मिलने लम्बे सफ़र पर निकल चुके थे...
२- शशांक का सुबह फोन आया की ''रवि जी माँ नहीं रही'' शशांक मेरे दोस्तों में से है,
मै कई बार जब भी उनसे घर पर मिला हूँ उनके पिता की उम्र क्या है इसका अंदाजा लगा ही नहीं पाया लगा था कोई 54-55 साल के होंगे !ऐसा मेरा मानना था लेकिन खुद दोस्त ने ही बाद में बताया कि पिता अब करीब अठात्तर है...वो कैसे इतना फिट रहते है ? मै लगातार शशांक से बाते करता रहा हूँ ... लेकिन जब शमशान से वापस लौट रहा था अचानक नजर शशांक के पिता पर पड़ी वो मुझे लगा की अब वो अस्सी बरस से कम नहीं है ...शशांक इन दिनों पिता अकेले ना रहे इस लिए उनके साथ ज्यादा वक्त दे रहे है... लेकिन ये बुढ़ापा अचानक उनके पिता में इतना कैसे आ गया .. ये पता नहीं ?
३- बचपन से प्यारेलाल को मै जनता हूँ इंसानी बुराइयों की जितनी खूबि या होनी चाहिए करीब सभी उनमे थी... मुंबई में कमाई के बाद कभी गाँव में बीबी और बच्चों का ख्याल भी करना चाहिए इस बारे में उन्हेंने कभी सोंचा ही नहीं था .... एक दिन बीबी, बच्चो को छोड़ शहर आई.... और....प्यारेलाल को जानने वाले अजूबा देख रहे थे कि साल भर पहले का नास्तिक आदमी आस्तिक हो चुका था... नशा और दूसरी औरतों के पास जाने की आदत छुट चुकी थी.....और मकसद था बीबी और बच्चो के भविष्य की तैयारी करनी ... अब प्यारेलाल रिटायर्ड हो चुके है और अपने खेतो में काम करते है ... पति-पत्नी में इतना जमती है कि आस-पास के लोग अब उन्हें लैला-मजनू बुलाते है ... मेरे एक शरारती भतीजे ने जब प्यारेलाल से ये पूंछा की 'भैया अगर भाभी पहले मर जाएगी तो आप कैसे रहोगे' तो करीब 75 साल के प्यारेलाल का जवाब था ''मै खुद फांसी लगा लूँगा''
कभी यूरोप में लम्बे समय तक साथ रहने वाले जोड़ो पर सर्वे किया गया, निष्कर्ष निकला कि ज्यादातर जोड़ों के चेहरों में समानता होती है .... उसकी वजह हाव-भाव का एक जैसा मिलना भी हो सकता है ? लेकिन जब हिंदी के कवि बाबा नगार्जुन बुढ़ापे में प्रेम पर कविता लिखते है ....
यह तुम थी.....
कर गई चाक
तिमिर का सीना
जोत की फाँक
यह तुम थीं
सिकुड़ गई रग-रग
झुलस गया अंग-अंग
बनाकर ठूँठ छोड़ गया पतझार
उलंग असगुन-सा खड़ा रहा कचनार
अचानक उमगी डालों की सन्धि में
छरहरी टहनी
पोर-पोर में गसे थे टूसे
यह तुम थीं
झुलस गया अंग-अंग
बनाकर ठूँठ छोड़ गया पतझार
उलंग असगुन-सा खड़ा रहा कचनार
अचानक उमगी डालों की सन्धि में
छरहरी टहनी
पोर-पोर में गसे थे टूसे
यह तुम थीं
झुका रहा डालें फैलाकर
कगार पर खड़ा कोढ़ी गूलर
ऊपर उठ आई भादों की तलैया
जुड़ा गया बौने की छाल का रेशा-रेशा
यह तुम थीं ! - बाबा नागार्जुन
कगार पर खड़ा कोढ़ी गूलर
ऊपर उठ आई भादों की तलैया
जुड़ा गया बौने की छाल का रेशा-रेशा
यह तुम थीं ! - बाबा नागार्जुन
- जर्जर तन में प्रेम की ज्यादा जरुरत होती है ... समय के साथ ही साथी ( यह तुम ) की कुछ आदत ही ऐसी लग जाती है फिर जीवन उद्देश्य ही कुछ हल्का हो जाता है...बस यह तुम के लिए ----
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