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मेरे अंदर आधे गवांर और आधे शहर का कुछ इस तरह से मिलावट है की हमेशा गाँव में शहर और शहर में गाँव ढूँढता हूँ...पिछले एक दशक से जादा टीवी में पत्रकारिता करते हुए लगातार ये महसूस हुआ है हबहुत कुछ पीछे छूटा खास वो बाते जो दूसरो के लिए बकवास या अनाप-शनाप होगा...

Wednesday, July 6, 2011

दही हांडी

वाकडी चाल (टेढ़ी) में इस बार सचिन और तान्या गोविंदा नहीं खेलेंगे बल्की खुद मटकी बन लटके रहेंगे ... अब तक इस त्यौहार की वो शान थे लोगो को महीने भर से प्रेक्टिस  कराने से लेकर कहाँ-कहाँ मटकी फोडनी है और मानवीय पिरामिड (मीनार, थर ) में कौन किस उंचाई  पर रहेगा ये जिम्मेदारी भी उनकी होती थे... माने तो गोविंदा त्यौहार  के दोनों मैनेजर थे और बाकी साथी मजदूर .... मै अकसर उस टोली का हिस्सा भर रहा हूँ लीडर रहे सचिन और तान्या... लेकिन गोविंदाओ को जमा करने लेकर मैनेजमेंट के बीच  वो मटकी कब बन गए इसका अभी भी वाकडी चाल   के लोगो को यकींन ही  नहीं आता .
 
     मुंबई में बैठे मेरे दोस्तों त्यौहार और मस्ती की बात करते हुए  मुंबई की दही-हांडी यानी गोविंदा तक पहुँच गए ... बचपन से लगातार कालाचौकी और लालबाग इलाकों में ऐसे  त्यौहार को मै देखता आ रहा हूँ ...आज टीवी चैनलों पर जो गोविंदा हम देख रहे है वो पहले की तरह नहीं है  चाल- गली मोहल्ले से शुरू खेल कुछ इलाको के  दही-हांडी तक सिमटा था...मटके की उंचाई सिमटी थी और उस वक्त तक ज्यादा गिराकर मारने की गोविंदा की घटनाये शायद ही हुआ करती थी.. आम तौर पर हड्डी  टूटने, हाथ-पैर में चोट की जो एक दो घटनाये होती भी थे उसके लिए किसी एक को जो थर में शामिल था उसे जिम्मेदार मन लिया जाता था की.... शायद ज्यादा चढ़ गई होगी... लेकिन पिछले  साल दही काल के इस खेल में तीन नवयुवक मौत की भेंट चढ़ा गए  वजह थी त्यौहार प्रतियोगिता बन गया है इनामी धन रसूखदार आयोजक उंहें और उचाई चढाने के लिए मजबुर कर रहे है.        
  लेकिन मै बात तान्या और सचिन की कर रहा हूँ दरअसल दसवीं  फेल होने के बाद अब उनके पास काम था त्यौहार मनाना, क्रिकेट खेलना , और चाल की लड़कियों की दूसरो से बचाना, एक ऐसा सरोकार जिसके लिए कुछ मिलना तो नहीं लेकिन दूसरो से लड़ाई जरुर हो जाती थी...
 
उस साल गोविंदा पथक के साथ निकले थे  वो दोनों... दूसरी चाल के लोगो से किसी छोटी सी बात पर लड़ाई हो गई बात मार-पीट तक आ गई बिच-बचाव में बात आगे नहीं बढी लेकिन एक रंजीश की शुरुआत हो चुकी थी... कुछ दिनों बाद सचिन को अकेला पाकर दूसरी चाल के लोगो पिटाई कर दी चोट चहरे पर आई थी...इस लिए तान्या और दोस्तों ने बदला लेने की तैयारी भी कर ली और मारपीट करने वाले एक लडके की कुछ पिटाई इस तरह से कर दी की हास्पिटल में एक दिन के उसके मौत हो गई... अब तान्या का भाई 'दगडू' और सचिन की नौकरी करने वाली मान 'नयना' पुलिस चौकी और अदालत के चक्कर लगा रहे थे...
 
छः  महीने बाद दोनों बहार निकले  तो दोनों किसी शापित देवता से कम नहीं थे कभी अपनो के लिए दूसरो से लड़ाई तो कभी खुद के लिए अपनो से वसूली... जेल ने उन्हें काफी कुछ सिखा दिया था...लेकिन हत्या की रंजीश ख़त्म नहीं हुई थी कुछ दिनों के बाद तीन लोग चाल में आये  और तान्या को करीब दर्ज़न भर गोली मार कर चले गए इस बार रजिंश  में चाल के लोगो ने 'गैंगवार' जैसी घटना अपने करीब देखी  था.  अब बारी थी सचिन ने  उसने दूसरी गैंग के लोगो के साथ मिलकर फिर दो लोगो की हत्या की और एक दिन फिर पुलिस की गोली का इंतजार भी ख़त्म हुआ.... पुलिस ने तान्या और सचिन के नाम दर्जन भर डकैती और कई हत्या के मामले का हल खोज निकाला था...
 
    गोविंदा फिर आया है वाकडी चाल में इस बार एक मटकी के साथ दो मटकी लटकी है तान्या और सचिन के नाम, पारदर्शी प्लास्टिक में  कुछ सौ रुपयों  के साथ खीरा और केले के भी साथ लटके हुए है साथ तान्या और सचिन के फोटो भी.. लेकिन चाल में इस बार 'गोविंदा आला रे' का कोई उल्लास दिखाई नहीं दे रहा.          

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