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मेरे अंदर आधे गवांर और आधे शहर का कुछ इस तरह से मिलावट है की हमेशा गाँव में शहर और शहर में गाँव ढूँढता हूँ...पिछले एक दशक से जादा टीवी में पत्रकारिता करते हुए लगातार ये महसूस हुआ है हबहुत कुछ पीछे छूटा खास वो बाते जो दूसरो के लिए बकवास या अनाप-शनाप होगा...

Wednesday, December 29, 2010

टेकई साहेब

 ''जाडे के दिनों में अलाव के पास बैठे लोग अपने खेत में पैदा हुए आलू से लेकर कटहल तक की बड़ी साइज़ के बारे में बात कर रहे थे ज्यादा नहीं उनमें थोड़ी अतिशयोक्ति भी थी अचानक एक वाक़या टेकई साहेब ने लोगो को बताया 'की कैसे छत्तीसगढ़ में उन्होंने एक बड़ी से नाव में लादे एक अकेले कटहल को देखा जिसके वजन से नाव बार- बार डूबी जा रही थी. लोग खामोश थे उन्हें पता चल चुका था की साहेब अब 'गुलिवर लिलिपुट' के करेक्टर की  कहानियो में पहुँच चुके है'' 

- ये कुछ ऐसा चरित्र है जिसके बारे में मेरे गाँव के सभी लोग रूबरू हुए है कुछ अलग-अलग  कहानियां तो बता ही देंगे. मैं मुंबई में जब भी बड़े झूठ बोलने वालो से मिलता हूँ . तब मुझे ये हमेशा लगता है 'सामने वाला' कुछ छोटा ज़रुर है क्योंकि यहाँ पैमाना मेरे पास टेकई साहेब  का है.
          असल में आज विज्ञान नैनो टेक्नोलॉजी पर काम कर रहा है लेकिन मेरे गाँव के लोग बहुत पहले से इस तकनीक के बारे में जानते थे वो तो इसके प्रणेता टेकई साहब को मानते है... क्योंकि साहेब के छत्तीसगढ़ में (जहाँ वो गाँव से निकल कर पहली बार छत्तीसगढ़ और वापस आने के बाद कभी बाहर नहीं निकले) उन्होंने  इंसानों से आबाद एक ऐसा बाजार देखा था जहाँ दिन भर चहल पहल होती थी लेकिन रात में मालिक आकर उसकी हवा निकलता था और जेब में पूरे बाजार लेकर घर चले जाता था... ये अलग बात है की दुकानों में रखे सामान भी क्या साहेब के नैनो टेक्नोलॉजी का हिस्सा थे ये बताने की उन्होने कभी जहमत नहीं उठाई... या फिर वो सायकल जो मुहँ से फूंकनें  के बाद इतनी बड़ी हो जाती थी की तीन लोगो को आराम से बैठा कर पैडल मरते हुए लोगो को ले जाया जा सकता था.. 
उनकी बातों में गाँव के सबसे बड़े पीपल के पेड़ से दो-गुना बड़ा मिर्ची का पेड़ था जिसकी मिर्ची जीरे से थोड़ी बड़ी होती थे लेकिन तीखी इतनी की पचास लोग के खाने में अगर एक डाले तो भी तीखा-पन ज्यादा ही हो जाता था, इतना ही नहीं उनके छत्तीसगढ़ के मुर्गे भी भैसें से बड़े होते थे. अब तो एक पढी-लिखी पीढी ये मानने लगी है की साहब छत्तीसगढ़ के बजाय किसी दूसरे ग्रह पर गए होंगे जहाँ की तकनीक एडवांस होगी और खाने पिने की चीज़े हाइब्रिड...
सबसे उनके अजूबे क़िस्से को कइयो ने हकीक़त में तब देखा जब वो पास के गाँव में भैस खरीदने गए..भैंस बेचने वाला ये कह रहा था की अपने दूध के लिए रखी थी  लेकिन जवान बेटे बीमारी की मजबूरी है इस लिए बेचना पड रहा है.. बीमारी की वज़ह थी नदी के किनारे का वो भूत जो बेटे ने रात में खेत की रखवाली करते वक्त देखा था... नदी के किनारे एक लाश जल रही थे और भूत उसे ताप रहा था...बाकी का वाक़या साहेब ने खुद पूरा किया वो पूर्णमासी की रात थी और वो चने के खेत की रखवाली तो नहीं कर रहा था. बीमार बेटे ने हमीं भरी साहेब ने ये कहा की भूत नहीं वो खुद थे... उस रात चोरी करने.. असल में दूसरों की खड़ी फसल उखाड़ना साहेब के प्रिय शग़ल में से एक था.          

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