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मेरे अंदर आधे गवांर और आधे शहर का कुछ इस तरह से मिलावट है की हमेशा गाँव में शहर और शहर में गाँव ढूँढता हूँ...पिछले एक दशक से जादा टीवी में पत्रकारिता करते हुए लगातार ये महसूस हुआ है हबहुत कुछ पीछे छूटा खास वो बाते जो दूसरो के लिए बकवास या अनाप-शनाप होगा...

Tuesday, December 28, 2010

मेरा शहर और मेरा गाँव

मेरा शहर और मेरा गाँव
 
 
ये दोनों मेरे वजूद  का हिस्सा है लेकिन किसी शापित देवता से कम भी नहीं जब से मैं देखा रहा हूँ तब से दोनों लगातार बदला रहे है...
 
शहर-- 
शहर का साथ अब मज़दूर छोड़ चुके है और अब हाथ थमा है नई पीढ़ी के एक्जिकेटेव ने... अंदाज़ बदला है तो रिवाज भी बदले हुए अब दौड़ती ट्रेन से फिसलने वाले को थामने के बजाय उसे नीचे गिराने का पूरा मौका दिया जाता है.. वो  तबका जो अब तक अपने त्योहारों के मनाने के अंदाज़ के लिए जाना जाता था अब उसकी जगह शहर में स्पांसर होर्डिंग में मानिकचंद और डेवलपर ने ली है.. शहर बदला रहा है...अब चाल की नई मल्टीस्टोरी इमरतो ने ली है..aur चाल में रहने वाला दूर सबब में या माचिस की डिब्बी के आकार में एसआरे की इमारतो में अपनी जगह बना ली है.. 
 
लेकिन ये बदलाव तब भी हुआ होगा जब पहली बार यहाँ के मछुवारो के सामने मज़दूर आया होगा और कोली गाँव से मुंबई ने शहर बनाने की अंगड़ाई ली होगी.
 
गाँव -
कच्ची सड़क गर्मियों और सर्दीयों में मौसम का हद पार कर देना, ना बिजली का पता और ना ही केबल टीवी और आधुनिक  कपड़ों की स्टाइल... दरवाज़े पर बंधे हुए जानवर से घर की संपन्नता का पता चलाना और चौपाल में बूढ़े से लेकर जवानों का क़हक़हे... लेकिन अब गाँव का हाथ आधुकनिकता ने थामा है .... अब केबल टीवी, आधुनिक कपड़े, बिजली सब कुछ है.. सर्दी और गर्मी का पता नहीं है जानवर दरवाज़े से नदारद है चौपाले खाली है.. जवान शहरों में है बूढ़े अपने दिन गिन रहे है...   
ये तब भी हुआ होगा जब मैदान खेत बने होंगे , जानवर पालतू हुए होंगे इन्सान सामाजिक हुआ होगा.. तब ये बदलाव प्रकृति के नियमों से अलग था और जंगल गाँव बनाने की होड़ में था.. 
 
चलो मान लेते है बदलाव में हमेशा पुराना जमाना अच्छा होता है लेकिन ये निरंतर बदलने की चलाती रहेगी ... शायदा मेरे बच्चो को आज का शहर और आज का गाँव बदला मिले और तब आज के ये दोनों उन्हें अच्छे लगे.       

3 comments:

  1. ohh so u too started blogging bhai.. or u was already doing and its latest u added here??? Gaon aur shaher... achcha mozun hai.. badhia likha hai..!

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  2. bahot achhi tarah se aapne gaon aor shahar mai ho rahe badlaw ke zikr kiya hai...aane wale din main jane kya kya hoga..shayad gaon ke log shahar ko bhi pichhe chhod den..ya ho sakta hai ki gaon bas kitabo mai hi mile..

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  3. badlav jindagi ka ek aham hissa bhoot se chipke log tekai sahab ke katahal ko maat de rahe hain.....

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