'ए' फॉर एंकर
कुछ यूँ पूछ लिया था मैंने ..... घर वाले तो बड़े खुश होते होंगे जब आप को वो टीवी पर दिखते होगें ..... कंधा उचककर बड़े बेफिक्र अंदाज़ में उसने कहा था उन्हें भी फर्क नहीं परत और मुझे भी नहीं .... लेकिन जब भी मुझे अपनी एंकरिग सबसे ज्यादा अच्छी लगाती है तब यही सोचती हूँ की ....काश पापा ने मुझे एक बार इस तरह से देखा होता ..... ये कशक है और रहेगी भी .... उन्हें मुझ पर नाज था .... मेरी सभी अच्छी और कई बार गलत निर्णयों को लेकर वो मेरा समर्थन करते रहे ....लेकिन इस अंदाज़ में मुझे देखकर जो आँखें सबसे ज्यादा चमकती वो पापा की आँखें होती ....
चेहरे पर मस्ती थी ..... आवाज़ में खनक .......और सवाल पुछते वक्त कभी संजीदा - तो कभी उग्र अंदाज़ भी....जरुरत पड़े तो लटके झटके भी....एक औसत वजूद लेकिन आँफिस में कई बार मेक-अप में घूमते फिरते ठीक-ठाक महिलाओ को भी ये जाता देना की तुम मुझसे कम हो ....आम तौर पर टीवी में चिल्लाने वाले अच्छे एंकर माने जाते है .....वो उनमें से ही थी ...अपनी ख़ामियों को बिलकुल ना मानना ....
.मैं जनता तो उसे सालों से था लेकिन ना काम का सबका था और न जानने की फ़ुरसत थी उसकी इमेज बिंदास थी कभी कपड़ो को लेकर .... कभी ठहाको... कभी लड़को के बिच लगातार घुलेन मिलने की आदत से .... हांलाकि पहली बार वो मेरे पास तब आई जब छुट्टियों पर घर जाना था...और किसी जरिये घर जाने की जुगाड़ में मेरी मदत चाहिए थी ... कुछ लोगो से बात कर मैंने समस्या का समाधान कर दिया और यही से जान पहचान भी कुछ बढ़ी ...
आप उसका नाम कुछ भी रखा सकते है .... टीवी चैनलों में वैसे भी एंकर कुछ इसी अंदाज़ में आपको कही भी दिख जाएँगी ...
देर रात का वक्त था एक दिन अचानक उसने फोन किया और कहा की मुझे क्राईम ब्रांच से एक काल आया था कह रहे थे की तुम्हारे बारे में हमारे पास शिकायत आई है जल्द ही तुम्हें बुलाया जायेग…उसकी आवाज़ में डर था और मुझसे मदत की उम्मीद भी .... मैंने नंबर लेकर कहा की फोन बंद कर के सो जाओ .... जो कुछ है सुबह देखेंगे ... दूसरे दिन पता चला की काल क्राईम ब्रांच का नहीं था फोन करने वाला लगातार माफ़ी मांग रहा था ... असल में काल किसी आशिक का था जो पहचान तो छुपाना चाहता लेकिन डर दिखा कर बात भी करना चाहता था ....हांलाकि की मामला वही ख़त्म हुआ और काल आना बंद भी हो गया .... लेकिन इसके बाद वो खुल सी गई थी .... अब तक एक पहेली की तरह छुपे चहरे ने अपना नकाब उठा दिया था ....'ए ' अब दोस्त थी ....
'मेक -ओवर' और 'ग्रूमिंग' मिडिया की भाषा में यही कहा जाता है किसी नए प्रोफेशनल को पालिश होने में .... 'ए' इसी का कमाल थी ....'तुम कितनी काली हो'.... उसका पति झगड़ा शुरू करने की शुरुआत यही से करता था ......चौबीस की उम्र में ही घर वालो ने एक साफ्टवेयर इंजीनियर से शादी कर दी थी शुरुआत के दिन तो कुछ समझ में नहीं आया लेकिन बाद में 'ए ' की समझ में ये आने लगा था ...की पति किसी न किसी वजह से उसके पास आने से कतराता रहता है ..... बात तब खुली जब वो अपने एक पुरुष मित्र का लगातार जिक्र करता और उसे लेकर परेशान रहने लगा .... घर में सास की नजर में सारी गलती 'ए ' की थी .... ससुराल और मायके वालो के बिच -बचाव के बाद डाक्टर ,सेक्सोलजिस्ट और बहुत से निम -हाकिमो ने अपने नुख्से अजमा लिए थे .... लेकिन रिजल्ट कुछ नहीं .....अब तक ' चला ले बेटी ' कहने वाले अब रिश्ता खत्म करने के लिए तैयार हुए .... लेकिन दो साल बीत चूका था छ: महीने क़ानूनी खाना पूर्ति में गए ....'ए ' ने अब अपने पैरो पर खडे होने का फैसला लिया था ....घर वाले राजी भी हो गए ....
बिखरी जिंदगी .... टूटा आत्मविश्वास ...और छोटे शहर की परवरिश ...विरासत में 'ए ' के पास थे तो यही .... किसी चैनल में इन्टर्नसिप , तो कही फ्रिलासिंग शुरुआत यही थी .... साथ मिला कुछ उन लड़कियों का जो 'ए ' की तरह ही अपनी पहचान तलाश रहे थे .... एक फ़्लैट में ५-६ लड़किया किसी चिडियों की चंबा से कम नहीं थे सब की अपनी कहानिया थी अपना सफ़र था लेकिन एक दुसरे के साथ सभी खुश थे .....अब वाईस-ओवर, प्रोग्राम प्रोड्यूस करने के आलावा 'ए' ने कैमरे से दोस्ती कर ली थी लैंस के सामने कैसे चेहरे को चहकते रखना है या गंभीर ये तरकीब मिल गई थी ..... कभी पति से 'मोटी और काली' कहलाने वाली एक लड़की अब शानदार आत्मविश्वास के साथ खुद को स्लिम-ट्रिम कर चुकी थी ....ड्रेस सेन्स बदल चूका था बोलने का अंदाज भी .... छोटे शहर की छाप अब कोसो दूर पीछे छुट गई थी ....'ए' अब एक दम शहरी और मार्डन बन चुकी थी ..... उसके पास अब अपनी पहचान थी .... साथ ही कई नौकरियों के आफर भी ....
एक दिन मैंने 'ए' को फोन किया ''हैलो सर ... कुछ चहकते हुए 'ए ' ने शुरुआत की .... मेरे पास ढेरो सवाल थे ....कहा हो ? कैसे हो ? क्या कर रही हो ? इस बार जवाब बड़ा था कहा इन दिनों मेरी भी तबियत ठीक नहीं थी साथ ही दादी की सेहत काफी ख़राब है इस लिए घर आई हूँ ......पिछली नौकरी में मेरी अपने बॉस से नहीं जमी तो मैंने जाब छोड़ दिया नई नौकरी पकड़ी तो जरुर लेकिन काम करने का मन नहीं कर रहा है .... इन दिनों मै ठीक नहीं हूँ सर ... कई बार गाड़ी घर पर छोड़ कर टैक्सी से आफिस चली जाती हूँ .....सब कुछ अजीब सा कर रही हूँ ..... महीने भर से घर पर हूँ लेकिन नए आफिस को बताया तक नहीं है .... मैंने फिर सवाल किया अब आगे क्या करना चाहती हो ? जवाब था कई जगहों पर जाना चाहती हूँ .... मुंबई , पुणे और दूसरी जगहों पर जहाँ भी मन लगे हर उस जगह ....कही खोई हूँ मै ..... अब खुद को ढूढना है सर ..... अपने लिए .....
कहते है शिव ने अपने त्रिशूल से आत्मा और जीव को दो टूकड़ो में कर दिया था हर कोई अपने उसी अर्धांश को ढूढ़ रहा है .... शायद 'ए ' को अपना खोया हुआ अर्धांश कही मिल जाय इस दुवा के साथ ...... आमीन
waah ravi ... bahut khoob bhai ... likhane ki raftaar badhaa dijiye mitra
ReplyDeleteThanks Rajesh Bhai
Deleteआधे अधूरे की खोज में भटकना पूर्णता की प्राप्ति की यात्रा और रचनात्मकता की तरफ कदम दर कदम बढ़ना है . यही मानव प्रवृति, प्रकृति का अनमोल उपहार और अन्वेषण का महत्व पूर्ण सूत्र भी है . रवी जी आपका अन्वेषण यू ही चलता रहे इसी शुभ कामना के साथ ..... ओम प्रकाश दूबे
ReplyDeleteहौसला-अफजाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिया .....आशीर्वाद बना रहे .
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